शैशवावस्था की संवेदनाओं का उल्लेख्य कीजिए
shaishavaavastha kee sanvedanaon ka ullekhy keejie
क्या आप जानते है कि शैशवावस्था किसे कहते है, यदि नहीं तो कोई बात नहीं आज के लेख में आप सभी को शैशवावस्था की संवेदनाओं का उल्लेख्य से संबंधित हर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान किय जाएगा। इसलिए अगर आप भी शैशवावस्था से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको हमारे आज के लेख को पूरा पढ़ने की आवश्यकता है। तो चलिए बिना समय गंवाए सबसे पहले शैशवावस्था क्या होता है, इससे जुड़ी जानकारी साझा कर देते हैं।
शैशवावस्था किसे कहते हैं?
क्या आप जानते है कि शैशवावस्था किसे कहते है, यदि नहीं तो कोई बात नहीं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि बालक के जन्म से लेकर 6 साल तक की उम्र को मुख्य रूप से शैशवावस्था कहते है। हालांकि, इसे शैशवकाल भी कहा जाता है। दरअसल, इस अवस्था में बच्चा पूरी तरह से पराश्रित होता है। इसका अर्थ यह है कि बालक जन्म से लेकर 6 वर्ष तक दूसरे पर डिपेंडेड रहता है।
इस अवस्था में बालक की देखरेख माता पिता को कुछ अधिक बारीकी से करनी पड़ती है। जानकारी के मुताबिक बच्चे का विकास विभिन्न अवस्थाओं में शैशवावस्था का एक अलग ही प्रकार का महत्व माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बालक की इस अवस्था में माता पिता और घर के अन्य सदस्यों पर जिम्मेदारी अधिक होती है।
शैशवावस्था की संवेदनाओं का उल्लेख्य कीजिए
तो चलिए अब बिना समय गंवाए शैशवावस्था की संवेदनाओं का उल्लेख्य से जुड़ी जानकारी साझा कर देते हैं। जो कि इस प्रकार है…
1. शारीरिक विकास में तीव्रता
शैशवावस्था के शुरुआती तीन साल तक बालक के शारीरिक विकास की तीव्रता को प्रदर्शित करते है। 3 साल के बाद शारीरिक विकास की गति थोड़ी बहुत मंद हो जाती है। बालक के इस अवस्था में आंतारिक अंगों, इंद्रियों, मांस पेशियों इत्यादि का क्रमिक विकास होता है।
2. मानसिक विकास में तीव्रता
इस अवस्था में बालक का मानसिक विकास में तीव्रता आती है। दरअसल, बालक के 3 साल के हो जाने पर उनकी मानसिक शक्तियां काम करना शुरू कर देती है।
3. सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता
बालक के सीखने की विधि में काफी तीव्रता आती है और इस अवस्था में बालक जल्दी जल्दी अनेकों शब्दों को सिख लेता है।
4. कल्पना की सजीवता
बालक जब 4 साल का हो जाता है, तो इसमें कल्पना की सजीवता मिलती है। दरअसल, बालक इस अवस्था में सत्य और असत्य में फर्क नहीं कर पाते हैं। बच्चे इस अवस्था में कई तरह की कल्पनाएं करने लगते है।
5. दूसरों पर निर्भरता
दरअसल, बालक जन्म के कुछ सालों तक बिल्कुल असहाय हो जाता है और भोजन से लेकर अन्य सभी चीजों के लिए बालक इस अवस्था में दूसरों पर निर्भर रहता है।
6. आत्म प्रेम की भावना
बालक अपने इस अवस्था में अपने दादा, दादी, माता पिता, भाई और बहन इत्यादि से प्रेम की भावना रखता है। इसके साथ ही बालक इस अवस्था में चाहता है की घर वालों का प्रेम केवल उसे ही मिले और किसी और को ना मिलें। इस अवस्था में अगर प्रेम बालक के अलावा भी किसी को मिले तो बालक को उससे ईर्ष्या हो जाती है।
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निष्कर्ष
आशा है या आर्टिकल आपको बहुत पसंद आया हुआ इस आर्टिकल में हमने बताया शैशवावस्था की संवेदनाओं का उल्लेख्य कीजिए के बारे मे संपूर्ण जानकारी देने की कोशिश की है अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो आप अपने दोस्तों के साथ भी Share कर सकते हैं अगर आपको कोई भी Question हो तो आप हमें Comment कर सकते हैं हम आपका जवाब देने की कोशिश करेंगे।
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