दोस्तों, लावा एक ऐसा तत्व होता है जो पृथ्वी के गर्भ से निकलता है, तथा पृथ्वी के गर्भ से निकलने के लिए लावा जिस स्थान को चुनता है उसे ज्वालामुखी कहा जाता है। आमतौर पर ज्वालामुखी भूमि पर पाए जाते हैं। लेकिन कभी-कभी यह समुद्र के अंदर भी पाए जाते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि ज्वालामुखी होता क्या है? यदि आप नहीं जानते तो कोई बात नहीं। क्योंकि आज हम आपको बताएंगे कि Jwalamukhi kya hai?, ज्वालामुखी की परिभाषा क्या है? ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं? ज्वालामुखी कैसे काम करता है? और ज्वालामुखी से संबंधित लगभग सभी जानकारी आपको इस लेख में प्रदान करने की कोशिश करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं-
ज्वालामुखी क्या है? | Jwalamukhi kya hai
मित्रों, ज्वालामुखी पृथ्वी के भूमि पर उपस्थित एक ऐसा उभरा हुआ भाग होता है, जो पहाड़ जैसा प्रतीत होता है। यह पहाड़ की चोटी पर एक छिद्र होता है जिस छिद्र में से पिघली हुई चट्टानें, धातु, मिट्टी यह सभी धरती के गर्भ से बाहर की ओर से की जाती है।
यह गाढ़ा द्रव्य, गर्म पदार्थ ज्वालामुखी से बिल्कुल उसी प्रकार निकलता है जैसे फव्वारे में से पानी बाहर निकलता है। इस द्रव्य को आम भाषा में लावा कहा जाता है, तथा अंग्रेजी में इस लावा को मैग्मा के नाम से जाना जाता है।
यह इतना गर्म होता है कि यह चट्टानों के पिघले हुए लाल रूप में होता है। यह इतना सुर्ख लाल होता है कि यदि हमारी त्वचा इसके 1 मीटर के दायरे में भी आ जाए तो उस पर छाले हो जाते हैं। जिस पहाड़ नुमा आकृति से लावा बाहर निकलता है, उस स्थान को ज्वालामुखी कहा जाता है।
जिसका मतलब होता है ज्वाला के निकलने का मुख्य द्वार। ज्वालामुखी की परिभाषा यह हो सकती है कि वह पहाड़नुमा आकृति, जिसके मुख से लावा बाहर निकलता है। ऐसे स्थान को ज्वालामुखी कहा जाता है।
ज्वालामुखी कैसे काम करता है? (ज्वालामुखी क्यों फटता है?)
मित्रों, ज्वालामुखी के काम करने की प्रक्रिया अत्यंत ही आसान है। इस लेख के माध्यम से आप इसे बड़ी ही आसानी से समझ पाएंगे कि ज्वालामुखी कैसे काम करता है। दोस्तों जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था तब पृथ्वी वास्तव में ही एक आग का गोला था, जिसे ठंडा होने में लाखों वर्षों का समय लग गया। जिसके पश्चात इस पृथ्वी पर एक ठंडी सतह बन गई।
लेकिन पृथ्वी के अंदर आज भी पृथ्वी के गर्भ में सर्वाधिक मात्रा में लावा उपलब्ध है। पृथ्वी की सतह तथा लावे के बीच में तकरीबन 200 किलोमीटर मोटी भूमि हमारे मध्य में है। यानी अगर हम पृथ्वी की सतह से 200 किलोमीटर नीचे की ओर खोदेंगे तो लावा नजर भी आएगा और बाहर भी आ जाएगा।
अब आप सोच रहे होंगे कि कि अगर लावा इतना नीचे है तो वह ज्वालामुखी के द्वारा बाहर क्यों आता है? तो इसका एक विशेष कारण यह है कि पृथ्वी के नीचे केवल और केवल लावा ही नहीं है, बल्कि भयानक और जहरीली गैसे भी है।
इन गैसों के अत्यधिक तापमान पर गर्म होने के कारण उनके प्रेशर में हर समय वृद्धि होती रहती है। यह प्रेशर काफी अधिक होता है। कई ग्रहों पर यह प्रेशर इतना अधिक होता है कि पूरा ग्रह बम के धमाके की तरह फट जाता है।
लेकिन पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में ज्वालामुखी है और इसीलिए ज्वालामुखी के माध्यम से लावा और गैस दोनों बाहर निकलती रहती हैं। आपने देखा होगा कि ज्वालामुखी के फटने से कई किलोमीटर ऊंची ज्वालामुखी की लपेटे जाती है, अर्थात लावा कई किलोमीटर ऊंचा फेंका जाता है।
इतना ऊंचा लंबा खींचने के लिए हवा का प्रेशर काफी तेज होना चाहिए और यह प्रेशर भूगर्भ से बाहर आता है और किस प्रकार ज्वालामुखी काम करता है।
ज्वालामुखी कितने प्रकार का होता है?
दोस्तों ज्वालामुखी को आमतौर पर तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है- जिन्हें सक्रिय ज्वालामुखी, प्रसुप्त ज्वालामुखी या शांत ज्वालामुखी, तथा मृत ज्वालामुखी कहा जाता है।
- सक्रिय ज्वालामुखी वे होते हैं जो महीने में कम से कम एक बार अपने मुख से ज्वाला अर्थात लावा को बाहर फेंकते रहते हैं।
- शांत या फिर प्रसुप्त ज्वालामुखी उन्हें कहते हैं जो कम से कम 6 महीने या 1 वर्ष से भी अधिक समय से शांत है और जिनके मुख से लावा बाहर नहीं निकला है।
- मृत ज्वालामुखी उन्हें कहते हैं जिनके मुख से कम से कम 2 से लेकर 5 वर्ष तक के समय के मध्य एक बार भी ज्वाला अर्थात लावा बाहर नहीं निकला है।
विश्व के मुख्य ज्वालामुखी
विश्व के कुछ मुख्य ज्वालामुखी इस प्रकार है-
- ओजस डेल सैलेडो जो अर्जेंटीना के चिली में स्थित है।
- गुआलाटीरि जोकि चिली में स्थित है।
- कोटापेक्सी जो कि इक्वाडोर में स्थित है।
- टुपुंगटीटो जो कि चीनी में स्थित है।
- रिंदजानी जोकिंग डोनेशन स्थित है।
- माउंट कैमरून जो कि अफ्रीका में स्थित है।
- नीरागोंगा जोकि जाएरे में स्थित है।
- कोयरीवक्सकाया जो कि रूस में स्थित है।
- पोपोकैपिटल जो कि मेक्सिको में स्थित है।
- माउंटइरेबस जोकि अंटार्कटिका में स्थित है।
- सेमेरू जोकि इंडोनेशिया में स्थित है।
- स्लामाट जोकि इंडोनेशिया में स्थित है।
- तंबोरा जो कि इंडोनेशिया में स्थित है।
- माउंट लेमिंगटन जोकि पपुआ न्यू गिनी में स्थित है।
यह सारे विश्व के कुछ प्रमुख ज्वालामुखी है।
निष्कर्ष
आज के लेख में हमने आपको बताया कि Jwalamukhi kya hai? इसकी परिभाषा क्या है, तथा यह कैसे कार्य करता है। इसके अलावा हमने ज्वालामुखी के बारे में लगभग सारी बाते इस लेख में बताई है।
हम आशा करते हैं कि आज का यह लेख पढ़ने के पश्चात Jwalamukhi kya hai यह जानने के लिए आप को अन्य किसी लेख को पढ़ने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यदि आपके मन मे इस लेख से संबंधित कोई सवाल है जो आप हमसे पूछना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं।
FAQ
ज्वालामुखी से आप क्या समझते है?
ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर मौजूद एक ऐसी दरार या मुंह है, जिससे पृथ्वी के अंदर का गर्म लावा, गैस, राख आदि निकलता है। दरअसल, यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक फ्रैक्चर है जिसके माध्यम से अंदर की सामग्री बाहर निकलती है।
ज्वालामुखी का क्या कारण है?
पृथ्वी के गर्भ में इतना अधिक तापमान होने के कारण यहाँ सब कुछ द्रव-पदार्थ (पिघला हुआ) में परिवर्तित हो जाता है और यह पिघला हुआ पदार्थ उच्च दाब के कारण भूपर्पटी (पृथ्वी की ऊपरी सतह) को तोड़कर बाहर आ जाता है। और जिस मुख से यह निकलती है उसे ज्वालामुखी कहते हैं।
ज्वालामुखी की उत्पत्ति कैसे हुई?
ज्वालामुखी एक भूगर्भीय संरचना है जहां पृथ्वी के अंदर से मैग्मा निकलता है। वे आमतौर पर टेक्टोनिक प्लेटों की सीमा पर उत्पन्न होते हैं, जो उनके आंदोलन का परिणाम होते हैं, हालांकि तथाकथित गर्म स्थान भी होते हैं, यानी ज्वालामुखी स्थित होते हैं जहां प्लेटों के बीच कोई गति नहीं होती है।
भारत में कुल कितने ज्वालामुखी है?
यह ज्वालामुखी 5,452 मीटर ऊंचा है और सबसे सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है।
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