Viyog Shringar Ras Ke Udaharan | वियोग श्रृंगार रस के उदाहरण

वियोग श्रृंगार रस हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें प्रेम की वेदना और विरह की भावना का अद्वितीय सौंदर्य प्रकट होता है। इस रस के माध्यम से कवि और लेखक पाठकों को प्रेम की गहराई और उसके दुखद पक्ष से परिचित कराते हैं।
आज इस लेख में हम कुछ वियोग श्रृंगार रस के उदाहरण (Viyog Shringar Ras Ke Udaharan) के बारे में चर्चा करेंगे।
वियोग रस की परिभाषा (Viyog Shringar Ras Ki Paribhasa)
वियोग श्रृंगार रस प्रेम के उस पक्ष को उजागर करता है जो सामान्यतः छिपा रहता है। यह रस प्रेमियों के बीच की दूरी, विरह और वियोग की वेदना को चित्रित करता है।
यह रस न केवल प्रेम के मधुर पक्ष को बल्कि उसकी कड़वाहट को भी प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक भावनाओं की गहराई में डूब जाते हैं।
वियोग श्रृंगार रस के उदाहरण (Viyog Shringar Ras Ke Udaharan)
1. रामचरितमानस में सीता-राम का वियोग
तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस‘ में सीता और राम के वियोग का वर्णन अद्वितीय है। जब सीता का हरण होता है और राम उन्हें ढूंढते हुए वन-वन भटकते हैं, उस समय वियोग श्रृंगार रस (Viyog Shringar Ras) का अत्यंत सुंदर चित्रण किया गया है:
“हे हृदय, तू धीरज धर। राम हृदय से होत विलग, सीता बस होत व्याकुल।”
2. मीराबाई का कृष्ण प्रेम
मीराबाई की कविताओं में कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और उनके वियोग की वेदना का अनूठा वर्णन मिलता है। मीराबाई अपने आराध्य कृष्ण से मिलने की इच्छा में वियोग की वेदना को सहती हैं:
“पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। विछुड़ गए हैं कान्हा, मिलन की आस सजायो।”
3. जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’
जयशंकर प्रसाद की महाकाव्य ‘कामायनी’ में श्रद्धा और मनु के बीच के वियोग का वर्णन भी वियोग श्रृंगार रस (Shringar Ras) का उत्कृष्ट उदाहरण है। श्रद्धा और मनु के बीच की दूरी और उनके वियोग की पीड़ा का वर्णन अद्वितीय है:
“मैं केवल संज्ञाहीन भाव, तुम हो संज्ञा, मैं हूँ शव, तुम्हारी विकल पुकार से जगती, मैं हूँ निर्जीव अनावरण।”
4. राधा-कृष्ण का वियोग
राधा और कृष्ण के वियोग की पीड़ा:
“राधा बिन श्याम, श्याम बिन राधा,
प्रेम वियोग की पीर, मन में बसा के जीना।”
5. रसखान का वियोग
रसखान के पदों में कृष्ण के वियोग का वर्णन:
“जिनके बिसरे टेहूँ वे रसखानि,
तिनकी मनौ बसौ हिय की घानी।”
वियोग श्रृंगार रस के दोहे (Viyog Shringar Ras Dohe)
- राधा वियोगिनि श्याम से, दुखिया हरि की गोद। बिन श्यामल तन राधिका, विरह अगन में बोध।।
- वन वन राम भटकत फिरें, सीता बिन उदास। अश्रु जलधि में डूबते, जीवन के सब आस।।
- श्याम बिना मैं जियूं, कैसे बिरह बिसाल। नैनन नीर बहाय करि, सूर बिनु गोपाल।।
- प्रिय बिन सूना गाँव, प्रिय बिना सूना राह। विरह अगन जलि प्रेमिका, रोए दिन और रात।।
निष्कर्ष
इस लेख में आपने वियोग श्रृंगार रस के उदाहरण (Viyog Shringar Ras Ke Udaharan) के बारे में जाना। वियोग श्रृंगार रस (Shringar Ras) हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण और अद्वितीय अंग है। यह रस प्रेम की गहराई और उसकी वेदना को उजागर करता है।
साहित्य के विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से, वियोग श्रृंगार रस (Viyog Shringar Ras) पाठकों को भावनाओं की गहराई में ले जाता है और उन्हें प्रेम के विभिन्न पहलुओं का अनुभव कराता है।
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- महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं:
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- रासलीला किस राज्य का प्रसिद्ध नृत्य है?
वियोग श्रृंगार रस का स्थाई भाव क्या है?
वियोग श्रृंगार रस का स्थाई भाव “रति” है।
वियोग श्रृंगार रस क्या होता है?
वियोग श्रृंगार रस वह रस है जिसमें प्रेमी और प्रेमिका के बीच की दूरी, विरह और वेदना की भावनाओं को व्यक्त किया जाता है।
संयोग श्रृंगार का दूसरा नाम क्या है?
संयोग श्रृंगार का दूसरा नाम “सम्भोग श्रृंगार” है।
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