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महिलाओं के लिए आरक्षण का महत्व बताएं

Mahilaon ke liye aarakshan ka mahatva bataiye

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कई लोग ऐसे हैं जिन्हें महिलाओं को सरकार के द्वारा दिए जा रहे आरक्षण से आपत्ति है, क्योंकि इसके पीछे एक वास्तविक तर्क यह दिया जाता है कि यदि महिला और पुरुष एक समान है, तो महिलाओं को केवल उनके लिंग (Gender) के आधार परआरक्षण क्यों दिया जा रहा है। हालांकि इसके पीछे एक ऐतिहासिक कारण है, जिसके बारे में हम सबको पता होना चाहिए।

महिलाओं के लिए आरक्षण के महत्व के बारे में कि हमें पता होना चाहिए (Mahilaon ke liye aarakshan ka mahatva bataiye)। यदि आपको नहीं पता है कि महिलाओं के लिए आरक्षण का महत्व क्या है तो आज के लेख में हम आपको महिलाओं के लिए आरक्षण का महत्व बताएंगे। तो चलिए शुरू करते हैं-

महिलाओं के लिए भारत में आरक्षण

इस बात को सिरे से नहीं नकारा जा सकता कि इतिहास में महिलाओं के साथ अत्याचार नहीं हुए। केवल इतिहास में ही नहीं बल्कि वर्तमान समय में आज तक भी, जहां हम यह देखते हैं कि केवल महिलाओं के साथ महिला होने के कारण ही अत्याचार कर लिए जाते हैं, जिनमें मारपीट, शारीरिक बल द्वारा महिलाओं का शोषण, शारीरिक शोषण, यौन शोषण, समान परिश्रम पर कम पारिश्रमिक देना, ऐसे किसी भी यातना को सिरे से नकारा नहीं जा सकता।

इसीलिए महिलाओं की आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए, आरक्षण की व्यवस्था भारतीय संविधान के अंतर्गत की गई। महिलाओं की राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए सबसे पहले 12 दिसंबर 1996 को लोकसभा में महिला आरक्षण का विधेयक प्रस्तुत किया गया था।

mahilaon ke liye aarakshan ka mahatva bataiye
महिलाओं के लिए आरक्षण का महत्व लिखिए | mahilaon ke liye aarakshan ka mahatva likhiye

तब से लेकर आज तक महिलाओं के विकास के लिए उनके उन्नति के लिए कई प्रकार से महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान किए गए हैं। यदि हम महिलाओं के राजनीति क्षेत्र की बात करें तो राज्यसभा में एक विधेयक पारित हुआ जिसमें लोकसभा में महिलाओं को 33% आरक्षण देने की नीति पर कानून बनाया जाने लगा।

लेकिन 2017 तक इस विधेयक पर संपूर्ण सहमति नहीं बन पाई थी, जिस कारण यह विधेयक कभी नहीं बन पाया। कई महिलाओं का यह मानना है कि महिलाओं को दोयम दर्जे का प्राणी माना जाता है, और इसीलिए पुरुष प्रधान समाज में संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत राजनीतिक स्तर पर महिलाओं की हिस्सेदारी 20% से भी कम है। इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन 2019 की रिपोर्ट के एक पैराग्राफ के अनुसार 193 देशों में मात्र 50 देशों में सांसदों के पद के लिए महिलाओं की हिस्सेदारी 30% या उससे अधिक है। बाकी सभी में 30% से नीचे ही है, और यदि विश्व के कई देशों की बात की जाए तो यह 14% से भी कम है।

लेकिन विश्व में कई ऐसे देश भी हैं जो कि आबादी के हिसाब से बहुत छोटे हैं। जैसे कि रवांडा, क्यूबा, बोलीविया, इन सभी में महिलाओं की राजनीतिक हिस्सेदारी 50% से भी अधिक है। संयुक्त राष्ट्र के मानकों के अनुसार संसद में महिलाओं की भागीदारी कम से कम 30% होनी चाहिए। कुछ विकसित देशों की बात की जाए तो चीन, रूस, कोरिया, फ़िलीपीन्स इन सभी में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का प्रावधान पहले से ही किया जा चुका है।

इसके अलावा फ्रांस जर्मनी स्वीडन नॉर्वे सभी में पॉलिटिकल पार्टियों ने पहले से ही महिलाओं को 33% आरक्षण दे रखा है। भारत में वर्तमान समय में 14.44% संख्या महिलाओं की है जो कि संख्या के हिसाब से 78 हो चुकी है। हालांकि से और भी अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है। लेकिन यदि चीन, पाकिस्तान, व बांग्लादेश के बारे में बात की जाए तो यहां पर महिलाओं की हिस्सेदारी पर भी कम है।

महिलाओं के लिए आरक्षण की आवश्यकता

जैसा कि हमने आपको बताया कि इस बात को सिरे से नकारा नहीं जा सकता कि महिलाओं के साथ दोयम दर्जे के इंसान जैसा व्यवहार इतिहास में किया गया है, और वर्तमान में भी किया जा रहा है।

इसलिए यह जरूरी है कि महिलाओं की राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया जाए। क्योंकि यह देखा गया है कि अधिकांश राजनीतिक दल अपनी मानसिकता में पुरुष प्रधान समाज को लेकर चलते हैं, जो कि महिलाओं को अपना उम्मीदवार तक बनाना सही नहीं समझते।

लेकिन यदि महिलाओं के नेतृत्व की बात की जाए तो भारत में कई ऐसी पॉलिटिकल पार्टियां हैं जो कि काफी ऊंचे स्तर पर अपना प्रभुत्व कायम करती हैं, साथ ही उनका नेतृत्व महिलाओं के द्वारा किया जाता है। भारत के प्रधानमंत्री भी एक बार महिला रह चुकी है और राष्ट्रपति के पद पर भी महिलाओं का प्रभुत्व देखा जा चुका है।

वर्तमान समय में भी भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुरमू है जो कि एक महिला है। लेकिन इस पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में महिलाओं को और अधिक आरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि महिलाओं की हिस्सेदारी राजनीतिक स्तर पर अभी भी उतनी अधिक नहीं बढ़ी है, जितनी बननी चाहिए।

लेकिन इसके विपरीत भी यह पक्षी देखा जा सकता है कि भारत में महिलाओं को आरक्षण की आवश्यकता गृहस्थ स्तर पर महिलाओं का प्रभुत्व सर्वाधिक देखा जा सकता है। साथ ही राजनीतिक स्तर पर भी महिलाओं का प्रभुत्व धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।

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निष्कर्ष

आशा है या आर्टिकल आपको बहुत पसंद आया हुआ इस आर्टिकल में हमने बताया भारत में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है | panchayatan mein mahilaon ke liye kitna pratishat aarakshan hai के बारे मे संपूर्ण जानकारी देने की कोशिश की है अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो आप अपने दोस्तों के साथ भी Share कर सकते हैं अगर आपको कोई भी Question हो तो आप हमें Comment कर सकते हैं हम आपका जवाब देने की कोशिश करेंगे।

FAQ

महिला आरक्षण से आप क्या समझते हैं?

महिला आरक्षण विधेयक भारतीय संसद में पेश किया गया विधेयक है, जिसके पारित होने से संसद में महिलाओं की 33% भागीदारी सुनिश्चित होगी। वैसे तो ये बिल पहले भी कई बार संसद में पेश हो चुका है लेकिन इस बार लगभग सभी पार्टियां इस बिल के समर्थन में हैं.

महिलाओं को कितना आरक्षण प्राप्त है?

भारत के अधिकांश 21 बड़े राज्यों में ग्राम पंचायत के पदों पर महिलाओं को 50% आरक्षण प्राप्त है। इसका सीधा सा मतलब है कि पंचायती राज के पद यानी उलटे पद पर 50% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। ग्राम पंचायतों में महिलाओं के लिए 50% सीटों का आरक्षण सही दिशा में एक कदम है।

भारत में महिलाओं को आरक्षण कब मिला?

आपको बता दें, संविधान के 73वें संशोधन-1992 में महिलाओं को पंचायतों में एक तिहाई (33%) आरक्षण दिया गया है। वर्तमान में कई राज्यों ने इस सीमा को बढ़ाकर 50% कर दिया है। यही कारण है कि पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका और भागीदारी बढ़ी है।

आरक्षण क्यों करना चाहिए?

आज के समय में आरक्षण किसी जाति विशेष के लिए नहीं बल्कि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए जरूरी है। शिक्षा देने के लिए आरक्षण जरूरी है। नौकरी के लिए आरक्षण जरूरी है। देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए आरक्षण जरूरी है।

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Aman

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