ब्राह्मण गोत्र कितने प्रकार के होते है? | Brahman kitne prakar ke hote hain
ब्राह्मण कितने प्रकार के होते हैं? | brahman kitne prakar ke hote hain
नमस्कार दोस्तो, ब्राह्मण जाति का नाम हिंदू धर्म की सबसे प्रमुख जातियों के अंतर्गत आता है जो कि यह काफी महत्वपूर्ण तथा काफी बड़ी जाती है। दोस्तों क्या आप जानते है, कि ब्राह्मण जाति के कितने प्रकार होते हैं। यदि आपको इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है, तथा आप इसके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको इस विषय के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बताने वाले हैं, कि ब्राह्मण जाति के कितने प्रकार होते हैं। हम आपको इस विषय से जुड़ी लगभग हर एक जानकारी इस पोस्ट के अंतर्गत शेयर करने वाले हैं। तो ऐसे में आज का की यह पोस्ट आपके लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाली है, तो इसको अंत जरूर पढ़िए।
ब्राह्मण जाति के कितने प्रकार होते हैं? | Brahman kitne prakar ke hote hain
ब्राह्मण जाति को कुल 8 भागों के अंतर्गत बांटा गया है, जिनके बारे में आपको नीचे विस्तार से जानकारी दी गई है।
1. मात्र:- यह ऐसे ब्राह्मण जाति होती है जो कर्म से ब्राह्मण नहीं होते हैं मुझे मात्र कहा जाता है। इनका यह मानना है कि ब्राह्मण कुल के अंतर्गत जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता है। वैसे यह मात्र होते हैं तथा यह है देवी देवताओं की पूजा करते हैं, और रात्रि के अंतर्गत किया कांड के अंदर लिप्त रहते हैं।।
2. ब्राह्मण:- ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।
3. श्रोत्रिय:- स्मृति अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है।
4. अनुचान:- कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह ‘अनुचान’ माना गया है।
5. भ्रूण:- अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, ऐसे इंद्रिय संयम व्यक्ति को भ्रूण कहा गया है।
6. ऋषिकल्प:- जो कोई भी व्यक्ति सभी वेदों, स्मृतियों और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मन और इंद्रियों को वश में करके आश्रम में सदा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निवास करता है उसे ऋषिकल्प कहा जाता है।
7. ऋषि:- ऐसे व्यक्ति तो सम्यक आहार, विहार आदि करते हुए ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह से परे हैं और जिसके श्राप और अनुग्रह फलित होने लगे हैं उस सत्यप्रतिज्ञ और समर्थ व्यक्ति को ऋषि कहा गया है।
8. मुनि:- जो व्यक्ति निवृत्ति मार्ग में स्थित, संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा सिद्ध है ऐसे ब्राह्मण को ‘मुनि’ कहते हैं।
आज आपने क्या सीखा
तो आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमने आपको बताया कि ब्राह्मण जाति के कितने प्रकार होते हैं, हमने आपको इस पोस्ट के अंतर्गत के विषय से जुड़ी लगभग हर एक जानकारी को देने का प्रयास किया है। इसके अलावा हमने आपके साथ इस पोस्ट के अंतर्गत ब्राह्मण जाति के सभी प्रकार जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां भी शेयर की है, जैसे कि ब्राह्मण जाति को कितने भागों के अंतर्गत बांटा गया है, तथा प्रत्येक ब्राह्मण जाति के वाहक की क्या-क्या विशेषताएं होती है, उसके बारे में संपूर्ण जानकारी हमने यहां पर आपके साथ शेयर की है।
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पंडित और ब्राह्मण में क्या अंतर है?
जो एक विशेष अनुशासन का ज्ञान रखता है वह पंडित है। प्राचीन भारत में वेदों, शास्त्रों आदि के महान ज्ञाता पंडित कहलाते थे। ब्राह्मण: ब्राह्मण शब्द की उत्पत्ति ब्राह्मण से हुई है, जो ब्रह्मा (भगवान) के अलावा किसी और की पूजा नहीं करता है, उसे ब्राह्मण कहा जाता है। जो पुरोहिती करके जीविकोपार्जन करता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचिकाकर्ता है।
सबसे ऊंचा ब्राह्मण कौन सा होता है?
इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है।
ब्राह्मणों के कुल देवता कौन है?
सामान्य रूप से उष्ट्रवाहिनी माता (ऊँटा देवी) को सर्व पुष्करणा ब्राह्मण समाज की कुलदेवी माना जाता है।
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