कबीर की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए
kabir das ke kavya ki bhashagat visheshtaon ko rekhankit kijiye

कबीर दास जी को एक महान कवि के तौर पर और रचनाकार के तौर पर पूरे विश्व में माना जाता है। हिंदी साहित्य के अंतर्गत भी कबीर दास जी एक महान पुरुष के तौर पर अपनी भूमिका निभाते हैं।
कबीर दास जी के बारे में जानना चाहते हैं और यह जानना चाहते हैं कि कबीर की काव्यगत विशेषताएं कौन-कौन सी है। यदि आप जानना कबीर की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन जानना चाहते हैं तो आज के लेख में हम आपको इसी के बारे में जानकारी देंगे और आपको कबीर के जीवन परिचय तथा उनकी काव्यगत विशेषताओं का वर्णन करके बताएंगे।
कबीर दास कौन थे? – कबीर दास जी का जीवन परिचय
कबीर दास जी के बारे में कबीर कसौटी में सारी बातें लिखी हुई है। कबीर जी के जन्म के संबंध में एक दोहा गढ़ा गया है।
चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायत को पूरनमासी तिथि प्रगट भए॥
जिसका मतलब यह है कि महात्मा कबीर का जन्म जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा संवत 1455 को हुआ था जिसे वर्तमान समय में सन 1398 के तौर पर समझा जा सकता है।
कबीर की मृत्यु के संबंध में भी एक प्रसिद्ध दोहा कहा गया है कि
पंद्रह सौ पिछेत्तरा कियो मगहर को गौन।
माघ सुदि एकादशी, मिल्यो पौन सो पौन॥
कबीर जी के जन्म को लेकर कई प्रकार की धारणाएं दी गई है। कई लोगों का कहना है कि कबीर का जन्म एक विधवा के द्वारा किया गया था। उनका जन्म ले तारा गांव के निकट हुआ था, और गांव के निकट पड़े एक तालाब के पास बचपन में कबीर को नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने पालन-पोषण करके बड़ा किया।
अब यदि हम कबीर दास जी की शिक्षा के बारे में आपको बताएं तो कबीरदास जी अनपढ़ होते हुए भी उनका ज्ञान काफी महान और विस्तृत था। वह साधु-संतों के बीच में और फकीरों की संगति में बैठकर वेदांत उपनिषदों और योग का ज्ञान प्राप्त करते थे। उन्होंने सूफी फकीरों की संगत में बैठकर इस्लाम धर्म के सिद्धांत के बारे में काफी जानकारी प्राप्त कर ली थी।
देशाटन के द्वारा भी उन्हें काफी ज्यादा अनुभव प्राप्त हो गया था। कबीर दास जी ने काशी के प्रसिद्ध महात्मा रामानंद जी को अपना गुरु माना है, और ऐसा कहा जाता है कि रामानंद जी ने कबीरदास को नीची जाति का समझ कर अपना शिष्य बनाने का इनकार कर दिया था, और इसलिए कबीर दास जी गंगा तट पर जाकर सीढ़ियों में लेट गए, जहां रामानंद जी प्रतिदिन प्रातः काल स्नान करने जाया करते थे।
अंधेरे में रामानंद जी का पैर कबीर के ऊपर पड़ा और उनके मुख से राम नाम निकला। तबसे कबीर ने रामानंद जी को अपना गुरु मान लिया था और राम-नाम गुरु मंत्र मान लिया। इसके पश्चात कबीर का जीवन आगे बढ़ता रहा और कबीर का विवाह एक बनखंडी बैरागी की लड़की से हुआ था, जिसे ने स्वीकार किया था। उसके द्वारा कबीर को एक पुत्र और एक कन्या की प्राप्ति भी हुई।
पुत्र का नाम कमाल था और पुत्री का नाम कमाली था। कबीर पुत्र के धन संचय में लगे रहने के कारण उससे नाराज रहा करते थे। कबीर जी मृत्यु के समय मगहर में उपस्थित थे जहां सन 1518 में उनकी मृत्यु हो गई।
कबीर दास जी की काव्यगत विशेषताएं
वैसे तो कबीर काफी अनपढ़ थे, और साहित्य शास्त्र का उन्हें ज्ञान भी नहीं था, और ना ही वह अलंकार छंद इन सब से परिचित थे।
उनकी भाषा अटपटी और गवार जैसी थी। इसलिए जो लोग कविताओं को विशेष रूप से समझने की कोशिश करते हैं और भाषाओं को अधिक महत्व देते हैं। उनकी दृष्टि में कबीर की कविता निम्न श्रेणी की थी, और उनका भाग भी पूर्ण रूप से साहित्यिक नहीं था।
लेकिन कबीर की कविताओं में जीवन की महानता को दिखाया गया है और भाव पक्ष की दृष्टि से भी कबीर की काव्य रचना उच्च स्तर की है, और भाव पक्ष के संदर्भ में भी बड़े से बड़े कवि से भी टक्कर ले सकते थे। उनमें से कई काव्य की विशेषताएं थी जो उन्हें बहुत ऊंचा कर देती थी।
निष्कर्ष
आशा है या आर्टिकल आपको बहुत पसंद आया हुआ इस आर्टिकल में हमने बताया (कबीरदास के काव्य की विशेषताएं बताइए | kabir ki kavyagat visheshta ka varnan kijiye) के बारे मे संपूर्ण जानकारी देने की कोशिश की है अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो आप अपने दोस्तों के साथ भी Share कर सकते हैं अगर आपको कोई भी Question हो तो आप हमें Comment कर सकते हैं हम आपका जवाब देने की कोशिश करेंगे।
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