श्री कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित – kanakdhara in hindi
कनकधारा स्त्रोत हिंदी पाठ | kanakadhara stotram hindi mai

माता लक्ष्मी जी को समर्पित कनकधारा स्तोत्र आज के समय कई लोगों को कंठस्थ याद है। और पुराने समय में हमें यह बताया जाता था कि कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से एक स्त्री को उसका मन भावन पति और एक पुरुष को उसकी मनभावन पत्नी मिलती है। इसे के साथ घर में दरिद्रता का नाश होता है, और सुख-शांति का प्रकाश होता है।
लेकिन, आज के समय कई लोग कनकधारा स्तोत्र को कंठस्थ तो कर लेते हैं, लेकिन उन्हें इसका हिंदी अर्थ पता नहीं होता है। क्या आप जानते हैं कि कनकधारा स्तोत्रम का अर्थ क्या है? यदि आप इसके बारे में नहीं जानते और जानना चाहते हैं तो आज के लेख में हम आपको कनकधारा स्तोत्र इन हिंदी | kanakdhara stotra in hindi अर्थ बताएंगे।
इसके साथ कनकधारा स्तोत्र संस्कृत में भी आपको बताएंगे हम आशा करते हैं, कि यह क्या है और इसके लाभ क्या है। आज का हमारा या लेख पढ़कर आप समझ पाएंगे कि kanakdhara stotra hindi mai अर्थ क्या है। तो चलिए शुरू करते हैं:-
कनकधारा स्तोत्र क्या है? | kanakadhara stotram kya hai

कनकधारा स्तोत्र मूल रूप से मां लक्ष्मी की उपासना के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला स्तोत्र होता है। वे लोग, जिनके घर में आमतौर पर धन की कमी होती है, या धन के लिए हर संभव श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं, इसके लिए आमतौर पर हमारे पुराणों में बताई गई और सुझाई गई कनकधारा यंत्र स्तोत्र या कनकधारा स्तोत्र का इस्तेमाल चमत्कारिक लाभ देता है।
यह एक संस्कृत में लिखा गया वंदना यंत्र है, जिसका मतलब यह है कि यहां पर माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए एक वंदना लिखी गई है, और इस वंदना में भगवान विष्णु को लेकर कुछ श्रेष्ट बातें कही गई है।
ऐसा माना जाता है कि, माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के सम्मान पर उस स्थान पर विराजमान होती है, जहां भगवान विष्णु का सम्मान किया गया है। इसलिए भगवान विष्णु की और माता लक्ष्मी की उपासना के लिए इस स्तोत्र की रचना की गई है।
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से क्या होता है?
- कनकधारा स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली और अति शीघ्र फलदाई होता है।
- वे लोग जो अति शीघ्र धन प्राप्त करना चाहते हैं वह माता लक्ष्मी की स्तुति इस कनकधारा स्तोत्र के माध्यम से करते हैं।
- माँ लक्ष्मी की पूजा विधि एक विशेष रूप से की जाती है। हालांकि यहां पर आपको इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए किसी विशेष पूजा विधान का आवाहन नहीं करना होता है, या किसी पूजा विधान के अंतर्गत इस स्तोत्र का पाठ नहीं करना होता है।
- किसी भी समय दिन में 1 बार इस स्तोत्र को पढ़ना पर्याप्त होता है।
- लेकिन ऐसा कहा गया है कि स्वच्छता के साथ स्तोत्र का पाठ करना ज्यादा अधिक फल देता है।
कनकधारा स्तोत्र क्या है, यह हमने आपको नीचे बताया और उसके भी नीचे हमने आपको उसका भावार्थ बताया है।
कनकधारा स्तोत्र की शब्दावली और उसका भावार्थ – कनकधारा स्तोत्र हिंदी
कनकधारा स्तोत्र की शब्दावली और उसका भावार्थ कुछ इस प्रकार है:-

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अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।
भावार्थ :- जिस प्रकार भरे हुए पुष्पों से सुसज्जित पेड़ों का आश्रय लेते हैं, उसी प्रकार भगवान श्री हरि विष्णु बहुत तेज से सुशोभित प्रकाश से अपने आपको सदैव प्रकाशमान रखते हैं। वह प्रकाश सदैव भगवान विष्णु के अंगों पर पड़ता है। जिसमें संपूर्ण विश्व का ऐश्वर्य निवास करता है, ऐसी संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी माता भगवती लक्ष्मी की कटाक्षमाला और तेज मेरे लिए भी मंगलदाई हों।
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मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।
भावार्थ :- जिस प्रकार एक भंवरा एक महान कमल के पुष्प के चारों और मंडराती है, लेकिन उस पर कभी बैठती नहीं है, उसी प्रकार भगवान श्री हरि विष्णु के मुखारविंद की ओर बार-बार प्रेम पूर्वक जाता मां लक्ष्मी का प्रकाश अपनी लज्जा से लौट आता है, क्योंकि भगवान विष्णु का प्रकाश अत्यंत तीव्र है, और सुखदाई है। समुद्र की पुत्री मां लक्ष्मी उसी मनोहर रूप में और अपने मुख मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृष्टि माला से मुझे धन संपत्ति प्रदान करें।
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विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।
भावार्थ :- जो देवी इंद्र को स्वर्ग में वैभव विलास देने में समर्थ है, जो मधुहंता श्री हरि भगवान विष्णु को भी अधिक से अधिक आनंद प्रदान करती है। जो नील कमल के पुष्प के आंतरिक भाग के समान मनोहर प्रतीत होती है। माँ लक्ष्मी जी के आधे खुले हुए नेत्रों की दृष्टि भी यदि क्षण भर के लिए मुझ पर पड़ जाए तो मेरा उद्धार हो जाएगा।
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आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।
भावार्थ :- शेषनाग के सईया पर विश्राम कर रहे भगवान विष्णु की पत्नी भगवती लक्ष्मी के नेत्र सदैव ऐश्वर्या को प्रदान करते हैं, जिनकी पुतलियां और बरोलिया वशीभूत करने में समर्थ है, लेकिन सदैव अपने कभी बिना चिपकने वाले नैनों से आनंद प्रदान करती है। वह भगवान श्री हरि के निकट रहकर भी अपनी नजरें बहुत तेज को संपूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर पाती है।
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बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।
भावार्थ :- जो भगवान मधुसुदन अपने वक्ष स्थल पर कौस्तुभ मणि धारण किए हुए हैं, और उनके शरीर पर इंद्रनील मई हरियाली सुशोभित हो रही है, उन महानभगवान विष्णु को भी अत्यंत प्रेम का संचार देने वाली मां लक्ष्मी वह कमलकुंज-कमला कटाक्षमाला मां मेरा कल्याण करें।
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कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।
भावार्थ :- जो मां लक्ष्मी बादलों की परछाई में बिजली के सामान चमकती है और भगवान विष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुंदर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है जिन्होंने अपने आविर्भाव से रघुवंशी को आनंदित किया है जो समस्त लोगों की जननी है बहना भगवती लक्ष्मी अपने पूजनीय मूर्ति से मेरा कल्याण करें
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प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।
भावार्थ :- समुद्र की पुत्री माता कमला की मंद, अलस और मंथर तथा अर्धोन्मीलीत दृष्टि जिसके प्रभाव से कामदेव भी मंगल को प्राप्त करता है, और जिसके प्रभाव से भगवान विष्णु के ह्रदय में कामदेव ने सबसे प्रथम बार स्थान ग्रहण किया था, वह दृष्टि भी मुझ पर पड़े।
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दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।
भावार्थ :- भगवान नारायण की प्रेमिका माँ लक्ष्मी कटाक्ष रूपी बादल और दया रूपी आंचल दुष्कर्म आरोपी अशुभको हटाकर विशाल रूपी और ताप से पीड़ित मुझ दुखी पर अपनी धन रुपी जलधारा की दृष्टि करें।
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इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।
भावार्थ :- विशिष्ट बुद्धि वाले लोग माता लक्ष्मी की प्रीति पात्र बनकर और उनके दया भाव से स्वर्ग पद पर आसानी से ही स्थान प्राप्त कर लेते हैं। पद्मासना पद्मादेवी जो विकसित कमल के गर्व के समान कांतिमयी है, मुझे भी वह मनोवांछित फल प्रदान करें।
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गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।
भावार्थ :- जो मां लक्ष्मी सृष्टिलीला के रूप में अर्थात सृष्टि के सृजन के दौरान ब्रह्म शक्ति के रूप में विराजमान होती है, और सृष्टि के विनाश के समय मां दुर्गा चंद्रशेखर वल्लभ पार्वती अर्थात रुद्रशक्ति के रूप में अवस्थित होती है। त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की प्रेमिका और माता लक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।
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श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।
भावार्थ :- माता लक्ष्मी शुभ कार्यों का फल देने वाली माता आप को मेरा प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंदुरवा रती के रूप में मैं आपको नमस्कार करता हूं। हे माता आप कमल में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा है, और पुष्टि स्वरूपा के रूप में पुरुषोत्तम प्रिया को मेरा नमस्कार है।
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नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।
भावार्थ :- कमल के गर्भ से भी कोमल कमल बदना लक्ष्मी को मेरा नमस्कार है। सिंधु सभ्यता की श्रीदेवी को मेरा नमस्कार है, चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को मेरा नमस्कार है भगवान नारायण की वल्लभा को मेरा नमस्कार है।
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सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।
भावार्थ :- कमल के समान नेत्रों वाली माता आपके चरणों को प्रणाम करना, मुझे विश्व की सारी संपत्ति प्रदान करने से भी अधिक प्रिय है। इसके अलावा संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले साम्राज्य देने में आपके कमल रूपी चरण समर्थ हैं, और आपका आशीर्वाद सभी पापों को हर लेने में समर्थ है। हे माँ, वह आशीर्वाद सदैव मुझ पर अवलंबन रहे तथा मुझे आप की चरण वंदना का अवसर सदैव प्राप्त हो।
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यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।
भावार्थ :- जिनके कृपा रूपीनगर के लिए अर्थात कृपा रुपी सृष्टि के लिए की गई उपासना उपासक की सभी मनोरथ को संपूर्ण करती है, और जातक को संपत्ति का विस्तार करने में सहायता करती है, श्रीहरि की प्रान्वाल्लाभा देवी, उन माँ देवी लक्ष्मी को मैं मन वाणी और शरीर से प्रणाम करता हूं।
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सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।
भावार्थ :- हे भगवती, हरि की प्रिय तुम कमल वन में निवास करने वाली हो, और तुम्हारे हाथों में नीला कमल सुशोभित रहता है। तुम अत्यंत ही उज्जवल वस्त्र गंध और माला से सुशोभित हो। तुम्हारी झांकी भी बड़ी ही मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने में समर्थ देवी मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।
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दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।
भावार्थ :- दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगो का जलाभिषेक संपादित होता है, अर्थात सम्पादन होता है, उन संपूर्ण लोकों के अधिश्वर भगवान विष्णु की गृहणी और सागर की पुत्री उन महान जग जननी मां लक्ष्मी को मेरा प्रातः काल प्रणाम है।
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कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।
भावार्थ :- कमलनयन केशव की कमनीय कामिनी कबले माता में दीन हीन व्यक्ति मनुष्य में अग्रगण्य हूं। इसका अर्थ यह है कि मैं निश्चित रूप से ही आपका आपकी कृपा का स्वभाविक पात्र भी हूं। तुम बढ़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरंगों के समान कटाक्ष द्वारा मेरी और देखो।
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स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।
भावार्थ :- जो मनुष्य इन स्थितियों के द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन जननी भगवती मां लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वह इस पृथ्वी पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं, तथा विद्वान पुरुष भी उनकी मनोभावों को जानने के लिए सदैव चुप रहते हैं।
कनकधारा स्तोत्र को कोटि-कोटि प्रणाम
यह कनकधारा स्तोत्र है और इसके साथ में ही इसके भावार्थ हमने अपनी भाषा में आपको बताए हैं।
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निष्कर्ष
दोस्तों आज के लेख में हमने आपको यह बताया है कि kanakadhara stotram hindi क्या है। इसके अलावा हमने आपको ये भी बताया कि कनकधारा स्तोत्र के महत्व और 18 श्लोक के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी है।
हम आशा करते हैं कि आज का हमारा यह देख पढ़कर आप समझ पाए होंगे कि kanakdhara strotra hindi mai अर्थ क्या है। जानकारी अच्छी लगी हो तो कृपया इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। यदि आपके मन में इस लेख से संबंधित कोई सवाल है जो आप हमसे पूछना चाहते हैं तो कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट कर के पूछ सकते हैं।
FAQ
कनकधारा स्त्रोत का पाठ कैसे करना चाहिए?
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने के लिए सबसे पहले आपको स्नान आदि के बाद कनकधारा यंत्र को अपने सामने रखना है। उसके बाद उस कनकधार यंत्र की पूजा पूर्व दिशा में करनी है और अगरबत्ती जलाकर आरती करनी है। . इसके बाद कनकधारा का पाठ करना शुरू करें।
कनकधारा स्तोत्र पाठ व मंत्र जाप कब और कैसे करना चाहिए?
ऐसा कहा जाता है कि जो कोई भी नियमित रूप से सच्चे दिल और भक्ति के साथ कनकधारा स्तोत्र का जाप करता है, खासकर शुक्रवार के दिन, माता लक्ष्मी उसके जीवन से धन संबंधी परेशानियों को दूर कर देती है।
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