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महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं: Jaishankar Prasad ki rachna

जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध रचना कौन सी है | jaishankar prasad ki rachna ke bare mein bataiye

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जयशंकर प्रसाद को युग का महाकाव्य माना जाता है। जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक थे। इन्होंने कई साहित्य की रचना की साथ ही इन्होंने निबंध, कहानियां, उपन्यास, नाटक, काव्य इत्यादि की भी रचना की। कई लोग जयशंकर प्रसाद की रचनाओं के बारे में जानना चाहते हैं और इनकी रचनाओं को पढ़ने में रुचि भी रखते हैं।

इसलिए आज के इस लेख में हम jaishankar prasad ki rachna के बारे में विस्तारपूर्वक बताने जा रहे हैं। यदि आप भी जयशंकर प्रसाद की रचनाओं में रुचि रखते हैं तो आज के इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

जयशंकर प्रसाद जी की रचनाएँ (Jaishankar prasad ki rachna kaun kaun si hai)

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जयशंकर प्रसाद जीने कई तरह की रचनाएं कि जैसे निबंध, उपन्यास, नाटक, कविताएं, मुक्तक, खंड काव्य महाकाव्य इत्यादि। चलिए हम जयशंकर प्रसाद जी की रचनाओं के बारे में विस्तारपूर्वक समझते हैं।

जयशंकर प्रसाद जी की सबसे पहली रचना सवैया छंद थी जिसे उन्होंने 1901 ईसवी में लिखा था। लेकिन जयशंकर प्रसाद जी का यह छंद सबसे पहले प्रकाशित नहीं हुआ था। प्रसाद जी की सबसे पहली प्रकाशित रचना एक कविता है जिसका नाम भारतेंदु है।

यह रचना सन 1906 ईसवी में प्रकाशित हुई थी। जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी रचनाएं ब्रजभाषा में लिखना आरंभ किया था। और बाद में वह खड़ी बोली में अपनी रचनाएं लिखने लगे।

जयशंकर प्रसाद जी की काव्य रचना

प्रेम पथिक प्रेम पथिक एक कविता है जो 1909 में प्रकाशित हुई थी।
करुणालय प्रसाद जी ने इस कविता को नाटक के आधार पर लिखा था परंतु इस कविता के अंत में गीत आत्मक पद्य हैं इसलिए इसे नाटक ना कहकर काव्य नाटक कहा जाता है। इसका प्रकाशन सन् 1913 में हुआ था।
महाराणा का महत्व यह काव्य सन 1914 में प्रकाशित हुई थी।
झरना, चित्राधार, कानन कुसुम इनकी यह सब कविताएं सन 1918 में प्रकाशित हुई थी। इन सभी कविताओं के कई प्रकाशन थे जोकि 1927 तक प्रकाशित हुए थे।
आंसू यह काव्य 1925 ईस्वी में प्रकाशित हुआ था।
लहर लहर रचना 1933 में प्रकाशित हुई थी।
कामायनी कामायनी जयशंकर प्रसाद जी के जीवन की सबसे आखरी काव्य रचना थी जो कि 1936 में प्रकाशित हुई थी।

जयशंकर प्रसाद की नाटक रचना

सज्जन यह रचना 1910 मे आई थी।
कल्याणी-परिणय यह नाटक सन 1912 मे प्रकाशित हुई।
करुणालय, प्रायश्चित्त सन 1913 मे यह नाटक प्रकाशित हुई थी।
राज्यश्री प्रसाद जी की यह रचना 1914 मे आई।
अजातशत्रु यह नाटक रचना 1922 मे प्रकाशित हुई।
विशाख जयशंकर प्रसाद जी का यह नाटक 1921 मे प्रकाशित हुई थी।
जनमेजय का नागयज्ञ यह नाटक 1926 मे आया।
कामना यह रचना 1927 मे आई थी।
स्कन्दगुप्त स्कंदगुप्त 1928 मे प्रकाशित हुआ।
एक-घूँट यह नाटक 1929 मे प्रकाशित हुआ।
ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद जी की ध्रुवस्वामिनी नाटक 1933 मे प्रकाशित हुआ था।
अग्निमित्र अग्निमित्र 1944 मे प्रकाशित हुआ था।
चन्द्रगुप्त जयशंकर प्रसाद जी का यह नाटक 1931 मे प्रकाशित हुआ था।
ध्रुवस्वामिनीजयशंकर प्रसाद जी की ध्रुवस्वामिनी नाटक 1933 मे प्रकाशित हुआ था।
अग्निमित्रअग्निमित्र 1944 मे प्रकाशित हुआ था।
चन्द्रगुप्तजयशंकर प्रसाद जी का यह नाटक 1931 मे प्रकाशित हुआ था।

जयशंकर प्रसाद जी का कहानी संग्रह

जयशंकर प्रसाद जी की सभी कहानियों को मिलकर कुल 72 कहानियाँ बताई जाती है।

  • ग्राम – जयशंकर प्रसाद जी की यह सबसे पहले कहानी है जो 1910 मे प्रकाशित हुई। विद्वानों द्वारा प्रसाद जी की ग्राम कहानी को हिन्दी की पहली आधुनिक कहानी बताई जाती है।
  • छाया – छाया मे कुल 6 कहानियाँ है जो 1912 मे प्रकाशित हुई थी।
  • आकाशदीप – आकाशदीप में कुल 19 कहानियां है। जैसे – चूड़ीवाला आकाशदीप, स्वर्ग के खंडहर, हिमालय का पथिक, भिखारिणी, ममता, पुणे चिन्ह, अपराधी, बंजारा, बैरागी, प्रतिध्वनि, कला, देवदासी, समुद्र संतरण, सुनहरा सांप, रूप की छाया, बिसाती, रमला, ज्योतिषमति इत्यादि। यह संग्रह 1929 मे प्रकाशित हुई थी।
  • आँधी – इसमे कुल 11 कहानियों का संग्रह है। जैसे – आँधी, मधुआ, दासी, घीसू, बेड़ी, व्रतभंग, ग्राम-गीत, विजया, अमिट स्मृति, नीरा और पुरस्कार। आंधी कहानी संग्रह भी 1929 मे प्रकाशित हुई।
  • प्रतिध्वनि – जयशंकर प्रसाद की इस कहानी संग्रह में कुल 15 कहानियां हैं। जैसे गूदड़भाई, गुदड़ी के लाल, प्रसाद, अघोरी के लाल, दुखिया, सहयोग, पाप की पराजय, खंडहर की लिपि, करुणा की विजय, फस पार का योगी, पत्थर की पुकार, प्रलय, प्रतिमा, कलावती की शिक्षा, चक्रवर्ती की स्तंभ। यह कहानी संग्रह 1926 मे प्रकाशित हुई।
  • इन्द्रजाल – यह कहानी 1936 मे प्रकाशित हुई जिसमे कुल 14 कहानियों का संग्रह है। छोटा जादूगर, नूरी, परिवर्तन, संदेश, सलीम, इंद्रजाल, चित्र मंदिर गुंडा, चित्र वाले पत्थर, सलवती, भीख में, देवरथ, विराम चिन्ह।

जयशंकर प्रसाद जी के उपन्यास:-

इन्होने केवल 3 उपन्यास लिखे जो की कंकाल, तितली और इरावती है। प्रेमचंद जी ने प्रसाद जी के कंकाल उपन्यास की काफी प्रसन्नता की है।

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

नामजयशंकर प्रसाद
जन्मसन 1890 ईस्वी में
जन्म स्थानउत्तर प्रदेश राज्य के काशी में
पिता का नामश्री देवी प्रसाद
शैक्षणिक योग्यताअंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का स्वाध्याय
रुचिसाहित्य के प्रति, काव्य रचना, नाटक लेखन
लेखन विधाकाव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध
मृत्यु15 नवंबर, 1937 ईस्वी में
साहित्य में पहचानछायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक
भाषाभावपूर्ण एवं विचारात्मक
शैलीविचारात्मक, अनुसंधानात्मक, इतिवृत्तात्मक, भावात्मक एवं चित्रात्मक।
साहित्य में स्थानजयशंकर प्रसाद जी को हिंदी साहित्य में नाटक को नई दिशा देने के कारण ‘प्रसाद युग’ का निर्माणकर्ता तथा ‘छायावाद का प्रवर्तक’ कहा गया है।

जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी 1889 ईस्वी को हुआ था। इनका जन्म माघ शुक्ल दशमी के दिन महुआ। प्रसाद जी काशी के गोवर्धन सराय गांव के रहने वाले थे। इनका परिवार पहले से ही संपन्न था।

jaishankar prasad ka pratham natak kaun sa hai

इनके पिता बाबू देवी प्रसाद और इनके भाई की आकस्मिक मृत्यु हो जाने के कारण इन्हें आठवीं कक्षा के बाद से ही विद्यालय को छोड़कर व्यवसाय को संभालना पड़ा। परंतु प्रसाद जी ने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी इन्होंने व्यवसाय को संभालने के साथ-साथ घर पर ही रहकर पारसी संस्कृत हिंदी एवं साहित्य का पूर्ण रूप से अध्ययन किया।

साथ ही इन्होंने भारतीय दर्शन काफी ज्ञान अर्जित किया। प्रसाद जी बचपन से ही काफी विद्वान थे इन्होंने 8 से 9 वर्ष की आयु में ही अमरकोश और लघु कौमुदी जैसी पुस्तक को कंठस्थ कर लिया था। कुछ समय बाद प्रसाद जी का पहला विवाह उन्नीस सौ 9 ईसवी में विंध्यवासिनी देवी के साथ कर दिया गया था।

परंतु उनकी पहली पत्नी को क्षय रोग हो जाने के कारण जल्द ही उनकी पत्नी का देहांत हो गया। पहली पत्नी का जल्द ही देहांत हो जाने के कारण उन्होंने दूसरा विवाह सन 1917 में सरस्वती देवी के साथ किया परंतु पहली पत्नी को क्षय नामक रोग होने के कारण उनके पूरे घर में क्षय रोग के कीटाणु फैल गए थे इसलिए जयशंकर प्रसाद जी की दूसरी पत्नी भी क्षय रोग से ग्रसित हो गई और उनकी मृत्यु भी जल्द हो गई।

इसके बाद कई लोगों के कहने पर प्रसाद जी ने तीसरा विवाह कमला देवी के साथ 1919 में किया जिससे उन्हें एक संतान हुई जिसका नाम उन्होंने रत्न शंकर रखा। इस बीच उन्होंने कई तरह के उपन्यासों का अध्ययन भी किया। साथ ही इन्होंने कई उपन्यास, रचनाएं, कविताएं और कहानियां भी लिखी। कुछ समय बाद प्रसाद जी भी क्षय रोग से ग्रसित हो गए और 15 नवंबर सन 1937 को उनका देहांत काशी में ही हो गया।

निष्कर्ष

आज के इस लेख मे हमने आपको jaishankar prasad ki Rachna के बारे मे बताया। उम्मीद है की आपको यह लेख पसंद आया होगा। यदि आपको इससे संबन्धित कोई प्रश्न पुछना हो तो आप हमे कमेंट करें।

जयशंकर प्रसाद की प्रथम रचना कौन सी थी?

महान लेखक जयशंकर प्रसाद की पहली कहानी ‘ग्राम’ थी जो इंदु पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कानन कुसुम उनका पहला काव्य संग्रह है। उनका पहला नाटक ‘सज्जन’ था जो अप्राप्य है।

जयशंकर प्रसाद की अधूरी उपन्यास कौन सा है?

जयशंकर प्रसाद का अधूरा उपन्यास, जो 1940 ई. में उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ था। दो उपन्यासों में प्रसाद ने वर्तमान समाज का चित्रण किया है, लेकिन इरावती में वे फिर से अतीत में लौट आए हैं।

जयशंकर प्रसाद की काव्य भाषा कौन सी है?

शुरुआत में वे ब्रजभाषा में कविता की रचना करते थे, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने खरीबोली को अपनी कविता का माध्यम बना लिया। उनकी भाषा परिष्कृत और परिष्कृत साहित्यिक और संस्कृत भाषा है।

जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है?

कामायनी

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Aman

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