‘अहिंसा परमो धर्मः’ का पूरा श्लोक | Ahinsa Parmo Dharma Sloka Full Line
अहिंसा परमो धर्मः गीता अध्याय | ahinsa parmo dharma full sloka number with meaning
दोस्तों, आज के समय जब भी लोग अहिंसा को या मारपीट से दूर रहने को अच्छा मानते हैं, और इसे ही आमतौर पर सभी लोगों में बताने की कोशिश करते हैं तब उसे एक संस्कृत के श्लोक का सहारा लेते हैं वह संस्कृत का श्लोक है अहिंसा परमो धर्मः।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह संस्कृत का श्लोक किस धर्म ग्रंथ से लिया गया है? या किस किताब से लिया गया है? यदि आप नहीं जानते और जानना चाहते हैं तो आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि अहिंसा परमो धर्मः पूरा श्लोक (ahinsa parmo dharma full shloka line in hindi) किया है।
अहिंसा परमो धर्म तो कहां से लिया गया है, इस श्लोक का मतलब क्या है, इन सब के बारे में आज हम आपको सारी जानकारी देंगे। इसके अलावा हम आपको यह भी बताएंगे कि अहिंसा परमो धर्मः श्लोक किसने कहा है। तो चलिए शुरू करते हैं:-
अहिंसा परमो धर्मः क्या है?
दोस्तों अहिंसा परमो धर्मः एक संस्कृत का श्लोक है, जिसका अर्थ यह है कि अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है।
- यहां पर अहिंसा का अर्थ अंग्रेजी में Non-Violence समझा जा सकता है, और हिंदी में शांति। यह लड़ाई झगड़े से बचाव या युद्ध से बचाव समझा जा सकता है।
- परमो का अर्थ महान है या सबसे महत्वपूर्ण है।
- धर्मः का अर्थ ड्यूटी, कर्तव्य या वह नैतिक कार्य जो निश्चित रूप से किया जाना चाहिए।
इसका अर्थ यह है कि जितना भी हो सके हमें लड़ाई झगड़े से दूर रहना चाहिए और किसी भी असंतुष्टि की शुरुआत में लड़ाई झगड़े को हल बनाकर उसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
अहिंसा परमो धर्म एक ऐसा श्लोक है जो मूल रूप से उन लोगों के लिए कहा गया है जिनके पास अथाह शक्ति है, और ऐसे लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि जहां तक हो सके उन्हें अपनी विनाशक शक्ति का इस्तेमाल ना करना पड़े, और शांति से सभी मुद्दे सुलझाने चाहिए।
अब आप समझ चुके होंगे कि अहिंसा परमो धर्मः क्या है।
अहिंसा परमो धर्मः का इस्तेमाल कहां हुआ है?
अहिंसा परमो धर्मः का इस्तेमाल हिंदू धर्म शास्त्रों में और वेदों में किया गया है। आमतौर पर यह महाभारत में सम्मिलित पाया गया है। महाभारत के आदि पर्व, वरना पर्व, अनुशासन पर्व में भी इसका उल्लेख पाया जाता है।
आदि पर्व में कहा गया है कि:-
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अहिंसा परमो धर्मः सर्वप्राणभृतां समृतः
इसका अर्थ यह है कि, जिस व्यक्ति के पास भी अपार शक्ति हैं उसके लिए दूसरों के प्राणों की रक्षा करना या दूसरे के प्राण डाल लेना या अहिंसा ना करना सबसे बड़ा नैतिक धर्म है।
इसके पश्चात वाना पर्व में कहा गया है कि-
अहिंसा सत्यवचनं सर्वभूतहितं परम
अहिंसा परमॊ धर्मः स च सत्ये परतिष्ठितः
सत्ये कृत्वा परतिष्ठां तु परवर्तन्ते परवृत्तयः
जिसका अर्थ यह है कि, जो यदि सदाचारी होता है वह सभी प्राणियों के प्रति दयालु होता है, और जो व्यक्ति उसे क्रोध जलाते हैं, उसके प्रति भी सदाचार दिखाता है वह किसी भी व्यक्ति प्राणी या जंतु को चोट पहुंचाने से बचाव करता है, वह कोशिश करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी भाषा से भी तकलीफ ना हो, जो लोग अच्छे और बुरे कर्मों का परिणाम सही ढंग से जानते हैं, वह कोशिश करते हैं कि अहिंसा को अपनाएं।
इसके पश्चात अनुशासन पर्व में कहा गया है कि
अहिंसा परमॊ धर्म इत्य उक्तं बहुशस तवया
शराथ्धेषु च भवान आह पितॄन आमिष काङ्क्षिणः
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परजानां हितकामेन तव अगस्त्येन महात्मना
आरण्याः सर्वथैवत्याः परॊक्षितास तपसा मृगाः
करिया हय एवं न हीयन्ते पितृथैवतसंश्रिताः
परीयन्ते पितरश चैव नयायतॊ मांसतर्पिताः
यह श्लोक एक वार्तालाप के रूप में प्रयुक्त किया गया है, जिसमें बाणों की शैया पर लेटे हुए भीष्म और उनके नजदीक बैठे हुए युधिष्ठिर के मध्य वार्तालाप होता है, और युधिष्ठिर पूछते हैं कि जब यह कहा गया है कि अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है तो हम क्यों श्राद्ध में पितरों के सम्मान के लिए मांस का अर्पण करते हैं, या मांस का प्रसाद बनाते हैं?
तो इसके जवाब में भीष्म ने कहा है कि सभी मनुष्य को लाभान्वित करने के लिए महान ऋषि और उच्च आत्मा महात्मा अगस्त्य ऋषि ने अपनी तपस्या से एक बार हिरण की सभी प्रजातियों को और जंगली जानवरों को देवताओं को समर्पित कर दिया था। इसलिए अब उन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वापस से उन्हें जानवरों को देवताओं को समर्पित करने की आवश्यकता नहीं है।
इसके पश्चात कुछ मामलों में यह भी कहा गया है कि यह श्लोक अधूरा है, और कुछ लोग सनातन धर्म के अंतर्गत इसे पूर्ण करते हैं और इस श्लोक को इस भारतीय बनाते हैं कि:-
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च
जिसका मतलब यह होता है कि निश्चित रूप से ही अहिंसा को अपनाना हमारा महान कर्तव्य है, और हमारा धर्म है। लेकिन अपने नैतिक कर्तव्य और महान लक्ष्यों की सुरक्षा हेतु यदि हिंसा का उपयोग करना पड़े तो यह भी अहिंसा से भी बड़ा धर्म है।
अहिंसा परमो धर्मः किसने कहा है?
कई बार अहिंसा परमो धर्मः वाक्य गांधी जी के मुख से सुनने को मिलता है, अर्थात ऐसा कहा जाता है कि गांधीजी अहिंसा के पुजारी थे और हमेशा अहिंसा को ही अधिक महत्व देते थे। लेकिन अहिंसा का उपयोग गांधी जी से पहले भी महाभारत और वेदों में किया जा चुका है, और इसके महत्व के बारे में वहां पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
अहिंसा परमो धर्म पूरा श्लोक क्या है
अहिंसा परमो धर्मः का पूरा श्लोक कुछ इस प्रकार है कि
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च
जिसका अर्थ यह होता है कि निश्चित रूप से ही अहिंसा एक महान धर्म है। लेकिन धर्म की रक्षा हेतु हिंसा करना उससे भी बड़ा धर्म है। यह पर धर्म का अर्थ किसी मजहब से नहीं है बल्कि उस नैतिक कर्तव्य से हैं, जो निश्चित रूप से आपके द्वारा किया जाना चाहिए, और यहां पर आप का अर्थ एक सदाचारी मनुष्य से है।
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निष्कर्ष
दोस्तों, आज के लेख में हमने आपको बताया अहिंसा परमो धर्मः क्या है। इसके अलावा हमने आपको यह भी बताया है कि अहिंसा परमो धर्मः पूरा श्लोक क्या है (ahinsa parmo dharma in hindi)।
हम आशा करते हैं कि आज का हमारा यह लेख पढ़ने के पश्चात आप यह समझ पाए होंगे कि अहिंसा परमो धर्मः पूरा श्लोक क्या है (ahimsa paramo dharma), और अहिंसा परमो धर्म का मतलब क्या है।
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अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च किस धर्म ग्रंथ से लिखा गया है
अहिंसा परमो धर्म धर्म हिंसा तथैव च, यह श्लोक महान धार्मिक ग्रंथ महाभारत से लिया गया है। अहिंसा परमो धर्म: इस श्लोक का वर्णन सबसे पहले महाभारत में हुआ था लेकिन भगवान महावीर ने इसका प्रचार-प्रसार किया। इस श्लोक का अर्थ यह है कि अहिंसा ही हमारा सबसे बड़ा धर्म है।
अहिंसा परमो धर्म पूरा श्लोक कहाँ से लिया गया है
अहिंसा परमो धर्म: धर्म हिंसा महाभारत से लिया गया है।
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