दोस्तों, हिंदी साहित्य में हिंदी नाटक का महत्व सर्वाधिक है, क्योंकि हिंदी नाटक की अपने आप में हिंदी साहित्य के फल के रूप में लोगों को अपना महत्व बताता है। लेकिन आधुनिक भारत में हिंदी नाटक का लेखक कौन है, इस सवाल का जवाब देने में आज भी लोग संकोच कर देते हैं।
यदि आप भी यह जानना चाहते हैं कि aadhunik hindi natak ke lekhak kaun hai, तो आज हम आपको विस्तार से बताएंगे कि aadhunik hindi natak ke lekhak kaun hai, उनका नाम क्या है, उनकी पहचान क्या है। तो चलिए शुरू करते हैं-
आधुनिक हिंदी नाटक के लेखक कौन हैं? | Aadhunik hindi natak ke lekhak kaun hai?
मित्रों, आज के समय में आधुनिक हिंदी नाटक के लेखक के रूप में रामचंद्र शुक्ल का नाम सबसे पहले लिया जाता है। क्योंकि इन्हें ही आधुनिक हिंदी नाटक के लेखक के रूप में पहचाना जाता है, और यह सत्य भी है।
रामचंद्र शुक्ल की आधुनिक हिंदी नाटक के लेखक है। हिंदी नाटक आमतौर पर एक ऐसा दृश्य काव्य होता है, जिसे समझने के लिए ध्वनि या श्रवण होने की की आवश्यकता नहीं है।
कोई भी दर्शक उसे नाटक को, उस नाटक की शैली तथा नाटक के संदर्भ को समझकर ही पूरे हिंदी नाटक को समझ सकता है। हालांकि हिंदी नाटक में श्रवण मूल रूप से होता है। यानी कि ध्वनि जरूर होती है लेकिन ध्वनि आवश्यक रूप से हो यह जरूरी नहीं है।
रामचंद्र शुक्ल कौन है? | ramchandra shukla kon hai
दोस्तों, रामचंद्र शुक्ल को आचार्य रामचंद्र शुक्ल के नाम से भी जाना जाता है। ये हिंदी साहित्य इतिहास के सूत्रपात के नाम से भी जाने जाते थे। यह एक हिंदी समालोचक, कहानीकार, साहित्यिकार, ऐतिहासिकार, निबंधकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे।
इन्होंने अपने जीवन में कई किताबें, लेख, कविताएं और साहित्य के ग्रंथ की रचना की। इनका जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले में हुआ था, और इन्होंने बचपन से ही हिंदी साहित्य में तथा हिंदी ग्रंथों में अपनी रुचि जाहिर की। जिसके पश्चात इनके अध्ययन की लग्नशीलता को देखते हुए इनकी पढ़ाई को आगे जारी रखने का निश्चय किया गया।
लेकिन इसके लिए भारत में उस समय वातावरण अनुकूल नहीं था, फिर भी मिर्जापुर के लंदन मिशन स्कूल से शिक्षा प्राप्त की, तथा इनके पिता न्यायालय में कार्यरत एक अधिकारी थे, और वह यही चाहते थे कि उनका पुत्र भी कचहरी के कामकाज को समझ कर अपनी जिंदगी सही ढंग से बसर करें।
लेकिन रामचंद्र शुक्ल जी का ध्यान तथा मन कहीं और ही था।
इनके पिता जी ने इन्हें इलाहाबाद में वकालत पढ़ने के लिए भेजा था, लेकिन की रुचि वकालत में नहीं साहित्य में थी। इसी परिणाम वश रामचंद्र शुक्ल अनुत्तीर्ण रहे। इसके पश्चात उनके पिताजी ने नए तहसीलदार की नौकरी दिलाने का प्रयास किया। लेकिन यह भी संभव नहीं हो पाया। लेकिन अंत में उन्होंने आनंद कादम्बिनी के सहायक के रूप में काम किया।
उन्होंने कई प्रकार की कृतिया रचित करी है जिसमें आलोचनात्मक ग्रंथ, निबंधात्मक ग्रंथ, ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की है। इसके अलावा अनुदित कृतियां, संपादित कृतियां, वर्ण्य विषय, और भाषा से संबंधित कई रचना इन्होंने की। इन्हें आज के समय आधुनिक नाटक का रचयिता या लेखक भी जाना जाता है।
रामचंद्र शुक्ल की जीवनी | Ramchandra shukla biography in hindi
नाम | आचार्य रामचंद्र शुक्ल |
जन्म | सन् 1884 ईस्वी |
जन्म स्थान | अगोना नामक गाँव, बस्ती, उत्तरप्रदेश |
पिता का नाम | पं. चंद्रबली शुक्ल |
माता का नाम | विभाषी देवी |
पेशा | निबंधकार, हिंदी आलोचक, कोशकार, कथाकार, कवि, साहित्य इतिहासकार और अनुवादक। |
प्रमुख रचनाएँ | निबंध संग्रह– ‘चिंतामणि’[भाग 1 और भाग 2] और ‘विचारविथी’
संपादन– ‘तुलसी ग्रंथावली’, ‘जायसी ग्रंथावली’, ‘हिंदी शब्दसागर’, ‘काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका’, ‘भ्रमरगीत सार’ |
मृत्यु | सन् 1941 ई. |
रामचंद्र शुक्ल का जन्म सन 1884 में 11 अक्टूबर को हुआ था, तथा इनकी मृत्यु सन 1941 में 2 फरवरी को हुई थी। हिंदी साहित्य का इतिहास उनके द्वारा लिखी गई एक महत्वपूर्ण पुस्तक थी, जो आज भी हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों के मार्ग को प्रकाशित करने का काम करती है। रामचंद्र शुक्ल जी ने अपने जीवन में सदैव शिक्षा, पाठ, और रचना को महत्व दिया।
उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में अगोना नामक गांव में हुआ था। इनकी माता जी का नाम विभाषी चंद्र शुक्ला, तथा इनके पिता का नाम पंडित चंद्रबली शुक्ल था। इनकी माता जी की गृहणी थी और पिता कचहरी में सदर कानूनगो के पद पर नियुक्त थे।
इनकी अल्पायु में ही इनकी माताजी ने इनका साथ छोड़कर स्वर्ग को प्रस्थान किया। जिसके कारण यह बचपन से ही परिपक्वता की सीढ़ी चढ़ने लगे। इनमें सीखने की शिक्षा बाल्यकाल से ही प्रबल थी लेकिन इनके पिता चाहते थे कि यह वकील बने और इसके लिए उन्होंने कई प्रयास किए जिसमें वह पूर्ण रूप से असफल हुए।
क्योंकि रामचंद्र जी का ध्यान और रुचि हिंदी साहित्य की ओर थी। हिंदी साहित्य में अपने जीवन को आगे बढ़ाया। सन 1903 से 1908 तक रामचंद्र जी ने आनंद कादंबिनी मैं सहायक संपादक का कार्य किया था।
साथ ही सन् 1904 से 1908 तक लन्दन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक भी रहे थे। इसी समय उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे, और उनके ज्ञान का यह चारों ओर फैल गया। इनके ज्ञान से प्रभावित होकर काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने उन्हें हिंदी शब्द सागर की संपादक का कार्यभार सौंपा।
जिसे उन्होंने बड़ी सफलता से पूरा किया। सन 1919 में इन्हें काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी प्राध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया, और सन 1941 तक वे वहां पर विभागाध्यक्ष के पद पर सुशोभित है। 2 फरवरी 1941 को हार्टअटैक से इनका देहांत हुआ।
रामचंद्र शुक्ल की रचना | Ramchandra shukla ke rachna
रामचंद्र शुक्ल की रचनाएं हैं जिसमें आलोचनात्मक भी शामिल है, जिसने इन्होंने सूर, तुलसी, जायसी पर कई आलोचनाएं लिखी। काव्य रहस्यवाद में उन्होंने अभिव्यंजनावाद तथा रस मीमांसा की रचनाएं की।
निबंधात्मक ग्रंथ में उन्होंने चिंतामणि ग्रंथ को दो भागों में संग्रहित किया, तथा इसके अलावा मित्रता अध्ययन जैसे कई रचना इन्होंने निबंधात्मक रूप में की।
इसके अलावा संग्रह चिंतामणि भाग 1 और 2 लिखित थी। निबंध संग्रह से हिंदी साहित्य का इतिहास इन के इतिहास बोध की रचना थी। इसके अलावा सूरदास, रस मीमांसा, त्रिवेणी इनके आलोचनात्मक ग्रंथ थे। इन्होंने जायसी ग्रंथावली तुलसी ग्रंथावली भ्रमरगीत सार हिंदी शब्द सागर, काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, आनंद कादम्बिनी इन सभी में संपादन का कार्य किया। इसके अलावा भी कई अन्य रचनाएं करी है।
निष्कर्ष
आज के इस लेख में हमने आपको बताया कि Aadhunik hindi natak ke lekhak kaun hai? इसी के साथ हमने आपको आधुनिक हिंदी नाटक के लेखक के बारे में अन्य जानकारी भी प्रदान की है।
हम आशा करते हैं कि आज का यह लेख पढ़ने के पश्चात ये जानकारी लेने के लिए आपको अन्य किसी लेख को पढ़ने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यदि आप इस लेख से संबंधित कोई सवाल पूछना चाहते हैं, तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं।
FAQ
आधुनिक नाटक क्या है?
इसलिए, यहां “आधुनिक नाटक” आमतौर पर यूरोपीय यथार्थवाद नाटक को संदर्भित करता है, जो 19 वीं शताब्दी के मध्य से 1880 के दशक तक पूरा होने के एक चरण तक पहुंच गया था, और एक अवधि विभाजन के रूप में, यह प्रथम विश्व युद्ध के समय तक था। नाटक तक। हालांकि सीमित है, इस शब्द का पश्चिमी भाषाओं में समानार्थक शब्द नहीं है।
हिंदी के प्रथम नाटक का नाम क्या है?
भारतेन्दु के पहले के नाटककारों में, कई विद्वान रीवा नरेश विश्वनाथ सिंह (1846-1911) द्वारा बृजभाषा में लिखे गए नाटक ‘आनंद रघुनंदन’ और गोपालचंद्र के ‘नहुस’ (1841) को हिंदी का पहला नाटक मानते हैं।
आधुनिक नाटक का क्या महत्व है?
आदर्शवादी चरित्र जीवन में उत्पन्न होने वाले संघर्षों को शांत करता है और यथार्थवादी चरित्र उन्हें और अधिक हिंसक बनाता है। ये यथार्थवादी चरित्र जीवन और समाज को बदलने की क्षमता रखते हैं। अतः आधुनिक नाटकों में वे पात्र जिनका व्यक्तित्व यथास्थिति के विरुद्ध विद्रोही है, अधिक महत्वपूर्ण हैं।
हिन्दी नाटक के रचनाकार कौन है?
इस सदी में कई महान मौलिक नाटकों की रचना की गई। इस शताब्दी के नाटकीय इतिहास को भारतेंदु युग, प्रसाद युग और उत्तर-प्रसाद युग के नामों में विभाजित किया गया है। भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी नाटक का जनक कहा जाता है।
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