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निजीकरण क्या है? उद्देश्य, सिद्धांत, फायदे, और नुकसान

nijikaran kya hota hai | nijikaran se kya aashay hai

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दोस्तों, आज तक अपने निजीकरण के बारे में कई बातें सुनी होंगी, कि निजीकरण अच्छा है, या निजीकरण बुरा है, सरकार निजीकरण कर रही है, सरकार को निजीकरण नहीं करना चाहिए, सरकार को निजीकरण करना चाहिए, यह सारी बातें हैं।

जो हम आमतौर पर सड़क के बीच किसी चाय की दुकान पर बैठकर हमारे दोस्तों के साथ करते हैं। या फिर सोशल मीडिया पर अपने विचार पेश करते हुए ट्विटर या फेसबुक पर कमेंट के माध्यम से अपनी बातों को लोगों के पास पहुंचाते हैं।

लेकिन क्या आपको वास्तव में पता है कि nijikaran kya hai? यदि आप नहीं जानते और केवल एक influence में आकर निजीकरण पर अपना फैसला कर रहे हैं तो आपको 2 मिनट रुक कर इस लेख को जरूर पूरा पढ़ना चाहिए।

क्योंकि आज हम आपको बताने वाले हैं कि निजीकरण क्या है, इसकी शुरुआत कब हुई, निजीकरण के उद्देश्य क्या हो सकते हैं, निजीकरण के क्या फायदे हैं, निजीकरण के क्या नुकसान हैं, इन सब के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे तो चलिए शुरू करते है –

निजीकरण क्या है? | Nijikaran Kya hai?

nijikaran kya hota hai

हम कोशिश करते हैं कि आप को सबसे साधारण भाषा में बता सके कि Nijikaran ka matlab kya hai या Nijikaran Kya hai। निजीकरण एक प्रकार से किसी निजी क्षेत्र के उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र में लाने की प्रक्रिया है।

जिसके अंतर्गत केवल और केवल सरकारी उद्योग ही आरक्षित थे, और अब सरकार की अनुमति से उसी सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योग करने के लिए निजी क्षेत्र की अनुमति प्राप्त कर चुके हैं।

उदाहरण के लिए यदि किसी सरकारी एयरपोर्ट को संभालने का काम किसी सरकारी संस्था का है, तो इसे हम किस प्रकार समझ सकते हैं कि एक सार्वजनिक क्षेत्र को संभालने का काम सरकारी संस्था का है।

लेकिन उसी एयरपोर्ट को संभालने की जिम्मेदारी सरकार की आज्ञा से किसी प्राइवेट कंपनी को मिल जाए तो यह उस एयरपोर्ट का निजीकरण हो जाएगा। हालांकि एयरपोर्ट पर फिर भी सरकार का चेक एंड बैलेंस रहेगा। अर्थात सरकार उसे निजी कंपनी पर सरकारी संपत्ति को संभालने के लिए नजर रखने का काम कर सकती है।

निजीकरण की आवश्यकतानिजीकरण के उद्देश्य

अब आप सोच रहे होंगे कि निजीकरण की आवश्यकता क्या है, तो हम आपको बताते हैं कि आज के समय भारत जैसे क्षेत्र में सरकारी संस्थाओं या सरकारी सार्वजनिक क्षेत्रों में निजीकरण की आवश्यकता क्यों और कैसे हैं?

दोस्तों, हो सकता है आप भारत के किसी भी राज्य में रहने वाले व्यक्ति हो जो इस लेख को पढ़ रहे हैं। आप जिस भी राज्य में रहते हैं अपने जिले में या अपने ब्लॉक में एक रोडवेज बस डिपो के नजदीक ही होंगे।

आपने एक ना एक बार तो रोडवेज बस डिपो का इस्तेमाल किया होगा। उस रोडवेज बस डिपो का संभालने का काम आज के समय ज्यादातर संख्याओं में सरकारी संस्थाएं ही कर रही है।

बहुत ही कम (0.001%) संख्या में किसी रोडवेज डिपो को संभालने का काम प्राइवेट संस्था कर रही है। लेकिन यदि आप किसी ऐसे रोडवेज डिपो को देखते हैं जो सरकारी संस्था के द्वारा संचालित की जा रही है, तो आप निश्चित तौर से ही उस रोडवेज बस डिपो के इंफ्रास्ट्रक्चर, उनके कार्यप्रणाली और उसकी नियमितता (व्यंग्य-अनियमितता) को बिल्कुल पसंद नहीं करते होंगे।

आपको ऐसा लगेगा जैसे आप 200 साल पुरानी किसी जगह पर आ गए हैं, और वह जगह खंडहर बनने में कुछ क्षण दूर है। अब उसके जवाब में आपको वह रोडवेज डिपो देखनी चाहिए जो प्राइवेट संस्थाओं के द्वारा संचालित की जा रही है। हालांकि इसमें अपने फायदे और नुकसान भी होते हैं।

लेकिन प्राइवेट संस्थाएं मूल रूप से हमें बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर फैसिलिटी और किसी भी सेवा के लिए समय की नियमितता प्रदान करती है, निजीकरण, किसी भी सरकारी सेवाओं को सही रूप से प्राप्त करने का मूल कारण हो सकता है।

हर व्यक्ति यह चाहता है कि उसे सर्वश्रेष्ठ इंफ्रास्ट्रक्चर, सर्वश्रेष्ठ फैसिलिटी के साथ समय की नियमितता भी प्रदान की जाए। और ऐसा आज के समय निजीकरण के माध्यम से किया जा सकता है।

निजीकरण केवल बस डिपो के अंतर्गत ही नहीं बल्कि, एयरपोर्ट, सरकारी पॉलिसी, सरकारी सेवा, सरकारी एस्टेट, सरकारी कंपनी, किसी भी मूलतः सरकारी अधिकृत कंपनियों के अंतर्गत संचालित की जा रही सरकारी सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत निजीकरण किया जा सकता है।

निजीकरण की शुरुआत कब हुई | nijikaran ki shuruaat kab hui

भारत में पहली बार जब औद्योगिक नीति का विस्तार किया गया, तब उसके अंतर्गत निजीकरण की शुरुआत की गई थी। यह सन 1991 की बात है जब यह घोषणा की गई कि किसी सार्वजनिक क्षेत्र के 31 उपक्रमों के शेयर बेचे जाएंगे। लेकिन फिर भी उस सरकारी सेक्टर पर सरकार का नियंत्रण बना रहेगा और प्राइवेट सेक्टर को उसी उपक्रमों पर बोली लगाने की पूरी अनुमति दी जाएगी।

nijikaran kise kahate hain

निजीकरण के क्या सिद्धांत है? | nijikaran ke siddhant kya hai

निजीकरण का सिद्धांत के निजीकरण के उद्देश्य पर आधारित है, और निजीकरण का सिद्धांत यह है कि “व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं, जनता का काम है, सरकार का काम जनता की भलाई के लिए व्यवसाय करने वाले लोगों पर नजर रखना है। जिसे आम तकनीकी भाषा में चेक एंड बैलेंस कहा जा सकता है।”

निजीकरण के क्या फायदे हैं? | nijikaran ke kya fayde kya hai

निजीकरण एक प्रकार से जनता  के फायदे के लिए ही अस्तित्व में लाई गई थी, और आज भी निजीकरण के फायदे, इसके नुकसान से कई गुना ज्यादा है। हालांकि नुकसान किसी भी पॉलिसी में देखा जा सकता है।

लेकिन जब किसी पॉलिसी को जनता के लिए अस्तित्व में लाया जाता है तो उसका मुख्य उद्देश्य जनता का फायदा होता है-

  • निजीकरण के द्वारा किसी भी क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि होती है।
  • निवेश के क्षेत्र में लगातार वृद्धि होती रहती है।
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संख्या में वृद्धि होती है।
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार सुधारने लगता है।
  • जीडीपी के आकार में और वजन में वृद्धि होती है।
  • किसी भी क्षेत्र में में डवलपमेंट आने लगता है
  • आम जनता को सुख-सुविधा प्राप्त होती है।
  • समय की नियमितता की अकाउंटेबिलिटी निर्धारित की जाती है।
  • समय को महत्व मिलता है, पैसे को महत्व मिलता है, व्यक्ति को महत्व मिलता है, काम को महत्व मिलता है।
  • जो व्यक्ति काम चोरी करता है उसके लिए निजी क्षेत्र में जगह नहीं है।
  • योग्य लोगों को काम करने का मौका मिलता है।
  • आम जनता के टैक्स के पैसों का उपयोग सही ढंग से किया जा सकता है।
  • किसी भी क्षेत्र में फ्लैक्सिबिलिटी बढ़ती है।
  • सर्विस की क्वालिटी बढ़ती है।
  • प्रोडक्ट की क्वालिटी में इंप्रूवमेंट होता है।
  • प्रतियोगिता को बढ़ावा मिलता है।
  • राजकोष का बोझ कम होता है।
  • बेहतर औद्योगिक तंत्र की स्थापना की जा सकती है।
  • नौकरशाही में आम तौर पर कमी आ जाती है।
  • आमतौर पर चीजों की कीमत किफायती हो जाती है।

यह सारे निजीकरण के फायदे हैं हालांकि निजीकरण की और भी कई फायदे हैं लेकिन हमने कुछ मुख्य फायदों को हमारी लिस्ट में शामिल किया है।

निजीकरण के क्या नुकसान है? | nijikaran ke kya nuskkan kya hai

  • निजीकरण के नुकसान भी काफी ज्यादा है। हालांकि किसी भी पॉलिसी में यदि नुकसान निकालने का मन बना लिया जाए तो हर पॉलिसी में 100-200 गलतियां निकाली जा सकती है। लेकिन जनता की भलाई के लिए देखा जाए तो निजीकरण की पॉलिसी में भी काफी कमियां हैं, जैसे कि-
  • निजीकरण के कारण कई बार कीमतों में समस्या पैदा हो जाती है।
  • कर्मचारियों के विरोध का मतलब नहीं रहता है।
  • वित्त की समस्या सामने आने लगती है।
  • यदि सरकार सही ढंग से चेक एंड बैलेंस ना रख पाए तो बड़े-बड़े घोटाले होने शुरू हो जाते हैं, जिन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहता।
  • क्षमता बढ़ाने के लिए अनुचित मार्ग का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • अनियंत्रित प्रतिस्पर्धा का पैदा होना।
  • उच्च लागत वाली अर्थव्यवस्था जिसमें आमतौर पर किसी भी प्रोडक्ट की कीमत में 5 से 10 गुना तक बढ़ोतरी हो जाती है।
  • जहां एक और निजीकरण से औद्योगिक तंत्र स्वस्थ बन सकता है, वहीं पर खराब भी बन सकता है। यह एक व्यापक बीमारी भी बन सकती है।
  • इसमें सफलता की गारंटी नहीं लेकिन उद्देश्य सफलता ही है।

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निष्कर्ष

आज के लेख में हमने आपको बताया कि Nijikaran Kya Hai, निजीकरण के उद्देश्य क्या है। इसके अलावा ninikaran के फायदे व नुकसान के ऊपर भी चर्चा करी है। हम आशा करते हैं कि आज का यह लेख आपको जानकारी पूर्ण लगा होगा। यदि आप इस लेख से संबंधित कोई सवाल पूछना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं।

FAQ

निजीकरण के क्या फायदे हैं?

ताकि देश के सभी लोगों को अस्पताल, स्कूल, परिवहन आदि की समान रूप से मुफ्त/कम पैसे की सुविधा प्रदान की जा सके।

निजीकरण की शुरुआत कब हुई?

देश में बड़े पैमाने पर निजीकरण कब शुरू हुआ? 1991 में औद्योगिक नीति में पहली बार निजीकरण की शुरुआत की बात की गई। सार्वजनिक क्षेत्र के 31 उपक्रमों के शेयर बेचे जाएंगे, लेकिन उन पर सरकार का नियंत्रण रहेगा। 1992-93 में उपक्रमों के शेयरों के लिए खुली बोली लगाने की अनुमति दी गई थी।

भारत में निजीकरण कौन लाया?

17 मई 2020 को, प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि सरकार सभी क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों सहित सभी सरकारी प्रतिष्ठानों का निजीकरण करेगी। इसने यह भी कहा कि सभी रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या 4 तक सीमित रहेगी।

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Aman

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